घटक द्वव्य |
रासत्रा, धमासा, खरेंटी, एरण्डी की जड़, देवदारू, कचूर, बच, अडूसे के पत्ते, सौंठ, हरड़, चव्य, सांठी की जड़, नागरमोथा, गिलोय, विधारा, सौंफ, गोखरू, असगन्ध, अतीस, अमलतास का गूदा, शतावर, पीपल, पियाबांसा, धनिया, छोटी कटेली और बड़ी कंटेली। |
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उपयोग |
अनेक प्रकार के वातरोग-सर्वांगवात, अर्धांगवात, कम्पवात, गृश्नसी, कमर, जंघा, आदि स्थानों में फिरता वात, श्लीपद, आमवात, अन्त्रवृद्धि, पक्षाघात, अपतानक, कुब्जवात, मूत्राशय, वीर्याशय में रही हुई वायु, स्त्रियों के योनि दोष, बन्ध्यादोष । |
मात्रा |
20 से 25 ग्राम का क्वाथ दिन में 2 बार। |
अनुपान |
पीपल का चूर्ण या एरण्ड तेल मिलाकर। |